Swarang

May 9, 2017

ज़मीन पर आसमान पाता हूँ!

Filed under: Compositions — Swarang @ 9:10 am
तेरी तस्वीर में अपनी मुस्कान सजाता हूँ
आखों में आने वाला इतिहास पाता हूँ!
चंद लम्हों के लिए ही चाहे नसीब हो,
तेरी कहानियों में अपनी दास्तान गाता हूँ!!

 

शब्दों के बाजार में बेजुबान खड़ा था
तेरी एक झलक में अपनी आवाज़ पाता हूँ!
हौसलों में तेरे सपनों की उड़ान पाता हूँ!
कमज़र्फ इस ज़हाँ में बेक़द्र और लाचार
हमारे सिलसिलों में नयी एक पहचान पाता हूँ!!

 

सभी दुनिया की चका चौंध में खोये लगते हैं
पर मैं तेरी सादगी में अपना देहात पाता हूँ!
दिन भर की भाग दौड़ के बाद बेरंग
तेरे रंगों में सुकून की शाम पाता हूँ!

 

वक़्त की दरारों गुमशुदा हुए जो हसीन पल
तेरे हाथों की लकीरों में वो आराम पाता हूँ!
चैटिंग के इस दौर में
सिर्फ “Hi” को ही पैगाम-ऐ-यार पाता हूँ,
तेरी साँसों में ज़िन्दगी की रफ़्तार पाता हूँ!!

 

कैद तेरी पलकों में दर्द से पार पाता हूँ
तेरी आहटों में एकांत पाता हूँ!
अधूरी दुआओं का मकाम पाता हूँ,
मुरीद हो गया हूँ तेरा इस कदर
तेरी हस्ती में ही उमरे तमाम पाता हूँ!!

 

तू अजनबी होकर भी अपना सा लगता है
तेरी परछाईं में खुद का आकार पाता हूँ!
खूबसूरत होगा इस कदर तेरा मज़हब भी,
सोचा न था,
मंदिर की घण्टियों में अल्लाह का नाम पाता हूँ!!

 

जिसकी धड़कनें कभी नाक़ामियत से बेज़ार थी,
अब आँखों की नमी में राग-ऐ-मल्हार पाता हूँ!
कुछ सोच कर ही ज़िक्र तेरा है आयत-ऐ-क़ुरान में
जो सजदे-खुदा में भीें तेरा ही निशान पाता हूँ!!
एहसास में तेरे भगवान् पाता हूँ!
ज़मीन पर होकर आसमान पाता हूँ!

3 Comments »

  1. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।

    Comment by रजनी की रचनायें — September 3, 2017 @ 1:03 pm | Reply

  2. Bahut sunder abhivyakti

    Comment by shradhapandey — February 18, 2019 @ 6:04 pm | Reply

  3. शब्दों से इस लेखन की सुंदरता को व्यक्त नहीं किया जा सकता |

    Comment by Ila Rani — June 18, 2019 @ 10:08 am | Reply


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